डॉ0वी0के0सिंह*
(वरिष्ठ पत्रकार)
*क्या सघन जाँच चिकित्सा कक्ष(ICU) में वेंटिलेटर पर दम तोड़ते सरकारी हेल्पलाइन नम्बर?*
*लॉक डाउन इण्डिया बनाम राहत।*
*उत्तर प्रदेश।*वैसे तो वैश्विक महामारी कोविड -19 के समक्ष विश्व की आर्थिक महाशक्ति अमेरिका ने भी घुटने टेक दिये हैं किन्तु, भारत के प्रधानमंत्री ने 133 करोड़ आबादी को बचाने के संकल्प से संकल्पित होकर देश व्यापी लॉक डाउन की उदघोषणा की, देश के लगभग प्रत्येक आम व खास नागरिक ने सहज ही न केवल स्वीकार किया बल्कि, लॉक डाउन का अनुपालन भी किया, और आगे भी राष्ट्रहित में लॉक डाउन का अनुपालन करने हेतु संकल्पित हैं। संकट की इस घड़ी में, देश के आम जनमानस, विशेषकर- दैनिक असंगठित मजदूर की भूँख आड़े आ रही थी, जिसके संदर्भ में न केवल देश के प्रधानमंत्री बल्कि, राज्य की सरकारों ने सहानुभूति व्यक्त करते हुये कहा कि, मजदूरों को घबराने की आवश्यकता नहीं है और जो, जहाँ है, जैसे है, वहीं रहे सरकार अपने एक एक नागरिक के भोजन की व्यवस्था करेगी, साथ ही राज्य एव जिला स्तर पर सरकार की ओर से मूलभूत जरूरतों के लिये हेल्पलाइन नम्बर जारी किये गये, साथ ही स्वयं सेवी संस्थाओं एव समाज सेवियों से निवेदित किया गया कि, वे कोरोना नामक महामारी से लड़ने में समाज व सरकार की सहायता करें, और निश्चय ही देश व प्रदेश भर की तमाम स्वयं सेवी संस्थाये एव सामाजिक कार्यकर्ता आगे आये, और अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वहन किया किन्तु, बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि, कम से कम उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद एव गौतमबुद्धनगर में जिला एव प्रदेश स्तर पर जारी हेल्पलाइन नम्बर तो स्वयं वेंटिलेटर पर सघनचिकित्सा कक्ष में लेटे दम तोड़ते प्रतीत हो रहे हैं। देश भर के विभिन्न प्रांतों से रोजी रोटी की तलाश में आये मजदूर सरकार तरफ से मिलने वाली राहत सामग्री की राह देख रहे हैं किन्तु, यथार्थ के धरातल पर सरकारी राशन का वितरण केवल उन्हीं मजदूरों को हो रहा है जो नोएडा, गाजियाबाद में लंबे अरसे से निवास कर रहे हैं तथा अपना राशन कार्ड बनवा चुके हैं जबकि, ऐसे लाखों मजदूर जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, और लॉक डाउन में फॅसे हुये है, ऐसे मजदूर आज भी भगवान भरोसे ही जीवन की अंतिम साँसे गिन रहे है।* कदाचित, सरकार भूल रही है कि, केंद्र व उ0प्र0 की भाजपा शाषित सरकार की चुनावी रणभेरी *सबका साथ, सबका विकास।* चहु दिशाओं में गूँजती थी किन्तु, यथार्थ के धरातल पर कुछ उल्ट पलट हो गयी है, कदाचित, *साथ सबका, विकास खास का।* ऐसा नहीं लगता कि, देश व प्रदेश की आम व खास जनता, संगठित एव असंगठित मजदूर सभी लॉक डाउन का अनुपालन कर रहे किन्तु, राज्य सरकारें लॉक डाउन का अनुपालन राज्य स्तर पर, एव जिला स्तर पर करवाने में असफल सिद्ध हुईं हैं। हमारे, प्रधानमंत्री की जनहित में एक मात्र सफाई अभियान की महत्वाकाँक्षा को सफल बनाने हेतु, भाजपा शाषित प्रदेशों में स्थानीय स्तर पर घर घर, दरवाजे,- दरवाजे कूड़े की गाड़ी चलवाकर, स्वच्छ भारत मिशन को सफल बनाया जा सकता है, फिर बार - बार जनहित में लॉक डाउन क्यों असफल रहा? क्यों लाखों करोड़ों मजदूर अपनी कर्म भूमि से पलायन करने पर विवश हुये? क्यों सरकार के बार बार अनुरोध करने पर भी, सरकारें मजदूरों का पलायन रोकने में असमर्थ रहीं? सरकार को लॉक डाउन को शतप्रतिशत सफल बनाने के लिए, कूड़े गाड़ी की तरह, राशन गीत की धुन पर, मजदूरों के द्वार तक, प्रत्येक मजदूर जो राहत का कृपा पात्र है, राहत सामग्री पहुँचाती तो शायद, मजदूर अपनी कर्म भूमि को छोड़कर पलायन पर विवश न होते।
क्या सघन जाँच चिकित्सा कक्ष(ICU) में वेंटिलेटर पर दम तोड़ते सरकारी हेल्पलाइन नम्बर?*